होमएग्रीकल्चरराजस्थान में उगाया जा रहा चाइनीज संतरा, साइज में छोटा नींबू और खाने में बेहद खट्टा

राजस्थान में उगाया जा रहा चाइनीज संतरा, साइज में छोटा नींबू और खाने में बेहद खट्टा

राजस्थान में उगाया जा रहा चाइनीज संतरा, साइज में छोटा नींबू और खाने में बेहद खट्टा
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By Local 18  Mar 18, 2023 6:06:38 PM IST (Updated)

यह चाइनीज ऑरेंज का पेड़ एक ग्राफटेड पेड़ है. इसे शरद उत्तर प्रदेश के आगरा शहर से लेकर आए थे. शरद ने नीदरलैंड, जर्मनी, इंडोनेशिया सहित अन्य विदेशों में इन तकनीकी के बारे में जानकारी ली और अपने देश में आकर इन्हें अपनाया.

किसान अब पारंपरिक खेती को छोड़ आधुनिक खेती की ओर बढ़ रहे हैं. इससे उन्हें फायदा भी हो रहा है. आज हम बात कर रहे हैं, अलवर शहर से करीब 35 किलोमीटर दूर बड़ौदामेव गांव के शरद कुमार शर्मा की. जो कि जो एक टेक्सटाइल इंजीनियर थे. उन्होंने विदेशों मे जाकर नई-नई तकनीकी के बारे में सीखा. करीब 5 साल पहले उन्होंने अपने खेत में चाइनीज ऑरेंज लगाना शुरू किया.

यह चाइनीज ऑरेंज का पेड़ एक ग्राफटेड पेड़ है. इसे शरद उत्तर प्रदेश के आगरा शहर से लेकर आए थे. शरद ने नीदरलैंड, जर्मनी, इंडोनेशिया सहित अन्य विदेशों में इन तकनीकी के बारे में जानकारी ली और अपने देश में आकर इन्हें अपनाया.
क्या है चाइनीज ऑरेंज?
शरद के पिताजी नाम रघुनाथ प्रसाद शर्मा ने बताया कि यह पेड़ शरद उत्तर प्रदेश से लेकर आए थे. शरद ने अपने हाथों से यह पेड़ अपने खेत में लगाए. जब उन्होंने इसके बारे में शरद से पूछा तो उन्हें लगा पता नहीं यह किस तरह का पेड़ होगा. इसमें किस तरह का फल निकल कर आएगा. लेकिन आज रघुनाथ जी कहते हैं कि इसमें छोटी-छोटी नींबू के तरह की संतरा निकलता है.
जो बाहर से संतरा की तरह ही दिखाई देती हैं. लेकिन इस संतरा की एक खास बात है. इसे सीधे पेड़ से तोड़कर बिना छिलका हटाई खाए तो यह मीठी लगती है. यदि इसका छिलका हटाकर आप खाएंगे तो यह बहुत ही खट्टी रहती है. शरद के पिता ने बताया कि इसमें बहुत अच्छे फल आ रहे हैं और लोग इसे पसंद कर रहे हैं. रघुनाथ शर्मा ने बताया कि यह पेड़ लगाए हुए करीब 5 साल हुए हैं और अब इनमें बहुत से फल आ रहे हैं हमें नहीं पता कि पर हो सकता है चाइना में भी इस पल को इसी तरीके से खाया जाता होगा.
गांव वालों की पसंद
रघुनाथ प्रसाद शर्मा ने फिर भी हमें चाइनीज संतरा को बाजार में बेचने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि यहां के गांव वाले व स्कूल जाने वाले बच्चे यह आकर हम से मांग कर ले जाते हैं. गांव वालों को ही यह इतनी पसंद आ रही है कि इन्हें बाजार में बेचने की जरूरत ही नहीं पड़ती है.
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