फेडरल रिजर्व ने बीते एक साल में दरों में बेहद तेजी से बढ़त की है. लेकिन जमीन पर इसका प्रभाव अनुमान के मुताबिक नहीं दिख रहा है, लेकिन मंदी की आशंका और बैंकिंग संकट के रूप में साइडइफेक्ट जरूर सामने आ गए हैं
बीते हफ्ते शेयर बाजार में तेज गिरावट देखने को मिली थी. जिसकी वजह क्रेडिट सुइस से जुड़े कमजोर संकेत रहे. ये संकेत इसलिए भी ज्यादा नुकसान वाले साबित हुए क्योंकि इससे ठीक पहले अमेरिकी बैकिंग सिस्टम की कमजोरी उजागर हुई जब दो बैंकों में तालाबंदी हुई और छोटे बैंक नकदी के संकट में आ गए. बैंकों के इस संकट के साथ ही अमेरिकी केंद्रीय बैंक के फैसले पर भी सवाल उठने लगे हैं क्योंकि प्रमुख दरों में तेज रफ्तार से हुई बढ़त ने मंदी की आशंका बढ़ा दी और बैंक अब दबाव में हैं. ऐसे में जानना जरूरी हो जाता है कि क्या फेड अपने ही जाल में फंस गया है.
क्यों उठा ये सवाल
ये सवाल इस लिए उठ रहा है क्योंकि महंगाई को काबू करने की कोशिश में फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में तेज बढ़त की है. ठीक एक साल पहले मार्च में फेड ने दरों में पहली बढ़त की जिसके बाद अब तक कुल 7 बार दरों में बढ़ोतरी हो चुकी है. वहीं अगले हफ्ते की समीक्षा में भी दरों में बढ़त देखने को मिल सकती है. दरअसल महंगाई से लेकर अर्थव्यवस्था तक के आंकड़े बता रहे हैं कि फेडरल रिजर्व के इन कदमों का कोई खास असर नहीं पड़ा हैं. लेकिन दूसरी तरफ ऊंची दर की वजह से मंदी की आशंकाएं बढ़ी हैं. इसका सीधा असर बैंकों की आय पर पड़ा है, जिससे बैंकिंग सिस्टम की कमजोरियां अब खुलकर सामने आ रही है. फेडरल रिजर्व के पास दरों में बढ़ोतरी के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है, लेकिन उसे अब बैंकों को बचाने के लिए भी कदम उठाने पड़ सकते हैं. ऐसे में पूछा जा रहा है कि क्या फेडरल रिजर्व की तेज रफ्तार उसके ही लिए भारी पड़ रहे हैं.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स
क्रीडेंस वेल्थ एडवाइजर के फाउंडर कीर्तन शाह के मुताबिक फेडरल रिजर्व की बीते एक साल की तेज प्रतिक्रिया का असर जमीन स्तर पर नहीं दिख रहा है. दरअसल मांग बनी हुई है और महंगाई दर 2 फीसदी की लक्ष्य सीमा
से कहीं ऊपर 6 फीसदी के करीब है. ऐसे में फेडरल रिजर्व के पास दरों में बढ़ोतरी को रोकने की कोई गुंजाइश नही है. हालांकि संभव है कि बैकिंग क्राइसिस के असर को देखने के लिए फेडरल रिजर्व एक बार दरों में बढ़ोतरी को थाम सकता है या फिर अगले हफ्ते आधा फीसदी की जगह एक चौथाई फीसदी की बढ़त कर सकता है. हालांकि ये कदम पूरी तरह से अस्थाई कदम होगा.
क्या है फेड के सामने की चुनौती
मौजूदा बैंकिंग सिस्टम के संकट को हल करने के लिए फेडरल रिजर्व कई कदम उठा रहा है. लेकिन कीर्तन शाह मानते हैं कि फेडरल रिजर्व के मौजूदा कदम ठोस हल नहीं है वो बैंकों को सिर्फ कुछ वक्त दे रहे हैं. अगर इस दिए गए वक्त में बैंक की सेहत नहीं सुधरती तो आगे स्थिति और गंभीर हो सकती है. उनके मुताबिक बैंकों को नकदी मुहैया कराने के लिए फेडरल रिजर्व की डिस्काउंट विंडो के आंकड़े बताते हैं कि बैंक नकदी के बड़े संकट से जूझ रहे हैं. आंकड़े बताते हैं कि संकट से पहले के हफ्ते में बैंकों ने इस विडो के जरिए 4.5 अरब डॉलर लिए. हालांकि संकट के हफ्ते में 152 अरब डॉलर तक कर्ज उठाए गए. यानि एक तरफ महंगाई दर नियंत्रित नहीं हो रही है, दूसरी तरफ बैंक मुश्किल में फंस रहे हैं. उनके मुताबिक फिलहाल बैंक संकट को टालने की कोशिश हो रही है लेकिन इसे ठीक नहीं किया गया तो आने वाले समय में ये बड़ा संकट बन कर उभर सकता है.