होमइकोनॉमीअमेरिका में बैंकिंग संकट से रहे सतर्क! शेयर बाजार पर इसका बुरा असर तय

अमेरिका में बैंकिंग संकट से रहे सतर्क! शेयर बाजार पर इसका बुरा असर तय

अमेरिका में बैंकिंग संकट से रहे सतर्क! शेयर बाजार पर इसका बुरा असर तय
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By HINDICNBCTV18.COMMar 19, 2023 12:14:18 PM IST (Published)

संकट के दौर से गुजर रहे अमेरिकी बैंकों के को उबारा जाए या नहीं. लेकिन इस बैंकिंग संकट का असर कई तरह से पड़ने वाला है. बाजार भी इससे अछूता नहीं रहेगा.

मौजूदा दौर में सरकारों और केंद्रीय बैंकों के लिए दो सबसे बड़ी चुनौतियां नजर आ रही है. पहला तो यह कि वो खस्ता हालत में पहुंच चुके वित्तीय संस्थानों की स्थिति सुधारें और दूसा ये कि वित्तीय स्थिरता को बनाए रखें. सिलिकॉन वैली बैंक के अचानक बंद होने के लिए अब ये सवाल खड़ा हुआ है कि क्या ये बैंक इतना बड़ा था कि इसे पूरी तरह बंद किया जा सकता है या नहीं. लेकिन, इन सबके बीच एक बात साफ हो चुकी है कि ये संकट जितनी बड़ी नजर आ रही है, उससे भी कहीं अधिक गहरी है.

इसके अलावा 2008 में वित्तीय संकट जैसे पहले के अनुभव को देखते हुए कहा जा सकता है कि अथॉरिटीज की चूक कि वजह से इस तरह का सकंट नहीं पैदा होता है. रिपोर्ट्स से तो यह भी पता चलता है कि Freddie Mac, Fannie Mae और AIG जैसे संस्थानों के फेल होने के इन्हें उबारा गया और इससे सरकारों को ज्यादा डिविडेंड मिले हैं. शायद, यह भी एक कारण है कि संकट की स्थिति से गुजर रहे संस्थानों को उबारने का प्रयास जोर पकड़ता जा रहा है. कई बार तो प्राइवेट प्लेयर्स भी इसमें हिस्सा ले रहे हैं या उन्हें इसका हिस्सा बनाया जा रहा है.
मौजूदा मामले में ही देखें तो Credit Suisse के अधिग्रहण के लिए UBS का आगे आना या First Republic Bank में 11 बैंकों की ओर से करीब 30 अरब डॉलर डाले जाना कोई नई बात नहीं है. इसके पहले JP Morgan ने Federal Reserve से 30 अरब डॉलर में Bear Stearns को खरीदा था. JP Morgan के लिए ये फैसला बेहतर साबित नहीं हुआ था. जेम डिमॉन ने इस बात को स्वीकार भी किया है. लेकिन, हर बार ऐसा नहीं हुआ है. SBI की अगुवाई में निवेशकों से कहा गया कि Yes Bank में बचाएं. अब उन्हें अपने निवेश पर संभावित तौर पर बेहतर रिटर्न मिलने की उम्मीद है.
ऐसे में अमेरिकी सरकार और फेडरल रिजर्व देश के फाइनेंशियल सिस्टम में भरोसा बनाए रखने के लिए कई कदम उठा रहे हैं. इसमें कुछ कोशिश छोटे बैंकों को बचाए रखने के लिए भी है. लेकिन, यह भी एक चिंता का विषय है.
अमेरिका के छोटे बैंकों पर जोखिम
वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि सिलिकॉन वैली बैंक की तरह ही 186 और बैंकों पर जोखिम है. इनमें से करीब 10% बैंकों के घाटा बहुत ज्यादा है, जबकि 10% बैंकों के पास पूंजी सिलिकॉन वैली बैंक से भी कम है. लगातार खराब एसेट वैल्यू के साथ ये बैंक अब अमेरिकी बैंकिंग सिस्टम के लिए खतरा हैं. इन बैंकों के डिपॉजिटर्स के लिए भी चिंता बढ़ती जा रही है.
Goldman Sachs ने एक रिपोर्ट में छोटे बैंकों की समस्या पर भी जोर दिया है. इस रिपोर्ट में कहा गया है, "अमेरिकी अर्थव्यवस्था में छोटे और मझोले बैंक एक अहम भूमिका निभाते हैं. 250 अरब डॉलर से कम एसेट वाले बैंक अमेरिका के कमर्शियल और इंडस्ट्रियल लेंडिंग में 50% हिस्सा रखते हैं. इसी प्रकार रेजिडेंशियल रियल एस्टेट में इनकी हिस्सेदारी 60%, कमर्शियल लेंडिंग में 80% और कंज्यूमर लेंडिंग में 45% है." इससे ये संकेत मिलते हैं कि डॉट कॉम संकट के मुकाबले अब लेंडिंग स्टैंडर्ड्स और कठोर होंगे. लेकिन ये वित्तीय संकट या महामारी के दौर के मुकाबले कम ही होगा. इससे क्रेडिट पर असर पड़ेगा और आगे चलकर अमेरिका की अर्थव्यवस्था में सुस्ती आएगी. इससे बाजार में भी जोखिम बढ़ने की संभावना है.
ब्याज दरों को लेकर फेड के फैसले पर असर
गोल्डमैन सैक्स ने अपनी रिपोर्ट में यह भी संभावना जताई है कि फेडरल रिजर्व अब ब्याज दरों में बढ़ोतरी पर ब्रेक लगा सकता है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कठिन दौर से गुजर रहे छोटे बैंकों पर फेड की ओर से लगाम लगाने का उतना ही असर होगा, जितन ब्याज दरों में 25-50 बेसिस प्वॉइंट तक बढ़ोतरी का होगा. यही कारण है कि गोल्डमैन सैक्स को नहीं लगता है कि फेडरल रिजर्व अगली बैठक में ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने का फैसला लेगा.
अगर ऐसा होता है तो इक्विटी बाजार के लिए ये अच्छी खबर नहीं होगी. ब्याज दरों में बढ़ोतरी, क्रेडिट नियमों में टाइटनिंग, हाउसिंग मार्केट में कमजोरी, महंगाई बढ़ने के साथ खरीद क्षमता घटने आदि से आगे का रास्ता कठिन होने वाला है. ऐसे में इन सभी पर करीबी नजर बनाए रखने की भी जरूरत है.

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