सुप्रीम कोर्ट ने घर खरीदारों को बड़ी राहत दी है. अब अगर खरीदार घर बनने में तय समय से ज्यादा की देरी पर बुकिंग अमाउंट वापस चाहता है, तो बिल्डर या ठेकेदार को वो राशि वापस देनी होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने घर खरीदने वालों को बड़ी राहत दी है. घर बनने में तय समय से ज्यादा की देरी पर अगर कोई खरीदार बुकिंग अमाउंट वापस चाहता है. तो, बिल्डर या ठेकेदार को वो राशि वापस लौटानी होगी. सिर्फ बुकिंग अमाउंट ही नहीं घर बनाने में नियत समय तक जितना भुगतान हो चुका है वो भी बिल्डर को लौटाना होगा. ये फैसला उस स्थिति में लागू होगा जब बिल्डर तय समय सीमा में मकान का निर्माण न कर सके. दरअसल कोर्ट ने ये फैसला फरीदाबाद के एक मामले में सुनाया है. जिसमें खरीदार ने निर्माण में देरी के चलते बिल्डर का पेमेंट रोक लिया था. उस पर कोर्ट ने कहा कि भुगतान में डिफॉल्टर होने पर भी बिल्डर को राशि रिफंड करनी होगी.
फरीदाबाद के बिल्डर से जुड़ा है मामला
ये मामला हरियाणा के फरीदाबाद एक बिल्डर से जुड़ा है. उसने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. NCDRC ने खरीदारों के हक में फैसला सुनाते हुए बिल्डर को भुगतान की पूरी राशि लौटाने के निर्देश दिए. ये बिल्डर खरीदारों को समय पर घर का पजेशन नहीं दे सका था. जिसके बाद खरीदारों ने उपभोक्ता अदालत में मामला दायर किया था और बिल्डर से रिफंड की मांग की थी. बिल्डर ने उपभोक्ता अदालत में कहा था कि खरीदारों ने 2014 से भुगतान करने में चूक की थी और 2016 से कोई भुगतान नहीं किया था. बिल्डर के मुताबिक खरीदारों ने भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872 की धारा 52 का उल्लंघन किया है.
NCDRC का फैसला कायम
इस मामले में NCDRC ने बिल्डर को भुगतान की गई पूरी राशि लौटाने के निर्देश तो दिए ही. साथ ही उस राशि पर 10 प्रतिशत प्रति वर्ष के हिसाब से मुआवजा देने के लिए भी कहा. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने छोटे मोटे बदलाव के साथ NCDRC का फैसला कायम रखा. शीर्ष अदालत ने मुआवजे की राशि को दस प्रतिशत से घटा कर 8 प्रतिशत प्रति वर्ष कर दिया. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बिल्डर को यह चेतावनी दी है कि यदि दो महीने के भीतर राशि का भुगतान नहीं किया गया, तो 12 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज लिया जाएगा.
क्या है मामला
फरीदाबाद के सेक्टर-70 स्थित रॉयल हेरिटेज प्रोजेक्ट में खरीदारों ने 7.01 लाख रुपये की राशि देकर फ्लैट बुक किए थे. इन लोगों को 2017 में पजेशन देने का वादा किया गया था. बिल्डर पांच साल बाद भी फ्लैट का पजेशन देने में विफल रहा, जिसके बाद खरीदारों ने उपभोक्ता अदालत का दरवाजा खटखटाया.
खरीदारों ने कहा कि उन्होंने 2017 में ईमेल के माध्यम से बिल्डर से यूनिट के आवंटन को रद्द करने और उनके द्वारा भुगतान की गई पूरी राशि को ब्याज सहित वापस करने का अनुरोध किया था. लेकिन उन्हें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली और बिल्डर ने एकतरफा फैसला करते हुए पजेशन की तारीख को फरवरी 2019 कर दिया. इसकी जानकारी खरीदारों को जुलाई 2018 में एक ईमेल के माध्यम दी गई.
बिल्डर ने क्या दिया तर्क?
अपने बचाव में बिल्डर ने तर्क दिया था कि पजेशन की प्रस्तावित तारीख जनवरी 2017 थी. हालांकि, वह पजेशन और ऑक्यूपेसी लेटर देने में विफल रहे थे लेकिन इस दौरान खरीदारों ने 2016 में भुगतान करना बंद कर दिया था जब कोई निर्माण नहीं हो रहा था.