कृषि की आय के साथ दूसरे स्रोत से आय होने पर टैक्स की गणना के लिए पार्शियल इंटीग्रेशन की तरीका इस्तेमाल किया जाता है
भारत में कृषि से हुई आय पर टैक्स का कोई प्रावधान नहीं है. हालांकि खेती से जुड़े लोगों के लिए समय के साथ साथ आय के कई अन्य स्रोत भी तैयार हो जाते हैं जिसमें किराये से आय, सैलरी, किसी दूसरे कारोबार से आय शामिल होती है. ऐसे में लोगों के बीच टैक्स की गणना को लेकर तमाम सवाल खड़े हो जाते हैं. सीएनबीएसी आवाज के साथ खास बातचीत में टैक्स गुरू शरद कोहली ने इस समस्या को आसानी के साथ समझाया है.
क्या है टैक्स में Partial Integration
आम तौर पर कृषि से आय इनकम टैक्स एक्ट 1961 की धारा 10(1) के तहत पूरी तरह से टैक्स फ्री होती है. टैक्स गुरू के मुताबिक हालांकि खेती के साथ अन्य स्रोत से होने वाली आय के लिए आयकर विभाग पार्शियल इंटीग्रेशन का फॉर्मूला अपनाता है. उनके मुताबिक पार्शियल इंटीग्रेशन में भी खेती से आय पर टैक्स नही लगाया जाता लेकिन किसी करदाता की कुल आय को कैलकुलेट करने के लिए आयकर के कैलकुलेशन में खेती की आय को भी शामिल किया जाता है. इसकी कैलकुलेशन के 3 चरण होते हैं
पहला चरण: करदाता की सभी तरह की आय (कृषि आय के साथ ) जोड़कर ये देखा जाता है कि उस पर कुल टैक्स देनदारी क्या बन रही है. इसमे टैक्स कैलकुलेशन का आम तरीका अपनाया जाता है और उसमें बेसिक एग्जेम्शन लिमिट, छूट आदि जोडी जाती है.
दूसरे चरण में कृषि आय पर बेसिक एग्जेम्शन लिमिट जोड़कर इस आय (कृषि आय + बेसिक एग्जेम्पशन स्लैब) पर टैक्स की गणना करेंगे.
तीसरे चरण में कृषि और गैर-कृषि आय वाले करदाता के देय टैक्स की गणना की जाएगी जो कि पहले चरण में निकले टैक्स और दूसरे चरण में निकले टैक्स का अंतर होगी.