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किसानों के लिए कृषि विभाग की सलाह फायदेमंद हो सकती है. नहीं तो बाद में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.
कूचबिहार जिले के तुफानगंज महाकुमार में देवरई क्षेत्र के एक किसान एप्पल बेर के पेड़ की खेती कर लाभान्वित हो रहा है. वह सभी किसानों को अनूठी सलाह देते हैं कि इस कल्टीवेटर से कोई भी किसान आसानी से लाभ उठा सकता है. एप्पल बेर की खेती करना बेहद आसान है. किसान चाहें तो 50 से 60 हजार की शुरूआती लागत में इसके पेड़ से हर साल 100 किलो तक उत्पादन ले सकते हैं. बता दें कि बाजार में इसकी मांग (Thai Apple Ber Demand) तो काफी अधिक है, लेकिन छोटे स्तर पर बागवानी होने के कारण थाई एप्पल बेर काफी महंगे बेचे जाते हैं.
हालांकि खेती के क्षेत्र में कुछ खास नियमों का पालन करना जरूरी है, तो आमदनी की पूरी गारंटी है. एप्पल बेर की इस किस्म को उगाने में ज्यादा समय नहीं लगता है.एप्पल बेर की खेती करने के लिए देसी और हाइब्रिड (Hybrid Thai Apple Ber) को प्रजातियों का इस्तेमाल कर सकते हैं. बता दें कि इस फल की हाइब्रिड प्रजातियों के पौधों की रोपाई करके मात्र 6 महीने के अंदर 100 किलो तक फलों का उत्पादन ले सकते हैं. इसकी रोपाई (Thai Apple Ber Cultivation) के साल भर बाद पौधे के परिपक्व होने पर 20 से 25 किलो तक फलों का उत्पादन मिल जाता है.
इसके अलावा, एक बार एक पेड़ लगाने के बाद, उस पेड़ से लगभग छह से सात साल तक अच्छी मात्रा में उपज प्राप्त की जा सकती है. इसलिए कोई भी किसान कम खर्च में लंबी अवधि के लिए बहुत अधिक वित्तीय लाभ देख सकता है.बाजार में थाई एप्पल को ₹50 प्रति किलो के भाव (Thai Apple Ber Price) पर बेचा जा सकता है. किसान चाहें तो अगले 50 साल तक थाई एप्पल बेर की फसल से बंपर उत्पादन (Thai Apple Ber Production) लेकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
देवचराय क्षेत्र के एप्पल बेर की खेती करने वाले रासबिहारी बिस्वास कहते हैं कि एप्पल बेर की खेती में कोई खास दिक्कत नहीं देखी जा सकती. इसलिए इस खेती में अच्छा खासा आर्थिक मुनाफा संभव है.
हालांकि इस कली में एक ही बीमारी देखी जा सकती है यह एक रोग कीट के हमले के कारण होता है. पत्तियां काली और मुड़ जाती हैं. नतीजतन, पेड़ को बहुत नुकसान होता है.
इस रोग को एप्पल बेर के वृक्ष झुलसा रोग के नाम से जाना जाता है. सही समय पर सही दवाई लगाने से इस रोग से छुटकारा पाना बहुत ही आसान है. तीन से चार दिन में रोग पूरी तरह ठीक हो जाता है. इसलिए दवा को महीने में दो से तीन बार लगाना चाहिए.
लेकिन इस कुल की एक खास बात यह है कि यह कुल कच्ची अवस्था में भी बहुत मीठा होता है. नतीजतन, बहुत से लोग इस सब्जी को खाना पसंद करते हैं.
हालांकि अभी तक कूचबिहार जिले में इसकी खेती बड़ी मात्रा में शुरू नहीं हो पाई है. अतः यह किसान अन्य किसानों को सलाह देता है कि इस खेती के साथ-साथ अन्य कृषि पद्धतियों को करके आर्थिक लाभ की मात्रा में वृद्धि करें.
लेकिन रासबिहारी विश्वास ने यह भी कहा कि पहली बार में उन्होंने कूचबिहार कृषि विभाग की मदद से यह खेती शुरू की. इसलिए किसी भी किसान को इस खेती को शुरू करने से पहले कृषि विभाग से सलाह लेनी चाहिए.