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आज के समय में किसान खेती बाड़ी को छोड़ रहे हैं. इसके दो कारण हैं- पहला पलायन और दूसरा जंगली जानवरों की वजह से खेती में किया जा रहा नुकसान. इसके अलावा क्लाइमेट चेंज की वजह से खेती बर्बाद हो रही है.
खेती में जितना उत्पादन होना चाहिए उतनी आय किसानों की नहीं हो पाती है जिस वजह से खेती कम होती जा रही है जिससे कई किसानों को काफी नुकसान होता है. अब जल्द ही किसान ऐसी खेती कर पाएंगे जिसे जंगली जानवर उसे बर्बाद नहीं कर पाएंगे.
किसान इन फसलों से अच्छे खासे पैसे कमा पाएंगे इसके लिए गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान कोसी कटारमल अल्मोड़ा के द्वारा औषधीय पौधों की खेती का काम शुरू किया जाएगा.
गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान के डॉक्टर सतीश आर्य ने बताया औषधि पौधों की खेती एवं उनके संरक्षण के अल्मोड़ा में यह पौधे लगाए जाएंगे.
इन औषधि पौधों को अल्मोड़ा जिले के हवालबाग और ताकुला ब्लॉक में लगाए जाने हैं. हवालबाग के 7 गांव में और ताकुला के 1 ब्लॉक में यह औषधि पौधे लगाए जाएंगे.
इसके लिए ग्रामीणों को ट्रेनिंग दी जाएगी और उन्हें औषधि पौधे निशुल्क में दिए जाएंगे. ग्रामीण के आजीविका उत्थान में यह कारगर सिद्ध होगा.
जी बी पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण के डॉक्टर सतीश चंद्र आर्य ने बताया औषधि पौधों में रोजमेरी, तिमुर, तेजपत्ता, सम्यों और वन हल्दी लगाई जाएगी.
इन औषधि पौधों की डिमांड काफी ज्यादा है ये औषधि पौधे करीब 150 किलो से लेकर 800 रुपए किलो तक बिकते हैं. जब इनकी खेती पूरी हो जाएगी तो इन्हें बाजार में बेचने की व्यवस्था भी कराई जाएगी इसके अलावा कंपनियों के द्वारा किसानों का टाईअप भी कराया जाएगा.