SUMMARY
अलवर जिले के किसान अब परंपरागत खेती छोड़कर मुनाफा देने वाली सब्जियां उगा रहे हैं. अब पिछले कुछ वर्षों से किसान खेती किसानी में नवाचार व नई तकनीक का उपयोग करके अधिक मुनाफा भी कमा रहे हैं. क्षेत्र में पहले किसानों प्याज की फसल को अपनाया.
अलवर जिले के किसान अब परंपरागत खेती छोड़कर मुनाफा देने वाली सब्जियां उगा रहे हैं. अब पिछले कुछ वर्षों से किसान खेती किसानी में नवाचार व नई तकनीक का उपयोग करके अधिक मुनाफा भी कमा रहे हैं. क्षेत्र में पहले किसानों प्याज की फसल को अपनाया. कई बार प्याज की फसल किसानों के लिए धन बरसाने वाली साबित हुई, लेकिन कुछ वर्षों में इसके भाव नीचे रहने से किसानों को बड़ा नुकसान भी झेलना पड़ा. इस कारण किसानों ने खेती किसानी में फिर नवाचार किया और खीरे की खेती की ओर मुड़े हैं. खीरे की खेती से किसान लाखों का लाभ भी हुआ.
साल में दो बार हो जाती है खीरे की खेती- अलवर शहर के पास उमरैण क्षेत्र व सिलीसेढ़ क्षेत्र के आस पास के किसान पॉलीहाउस बनाकर खीरे की खेती कर रहे है. कई किसान खेती से लाखों रुपए का लाभ कमाकर अन्य किसानों के लिए प्रेरणा बने हैं. पॉली हाउस में साल में दो खेती कर 5 से 6 लाख रुपए का लाभ कमा रहे हैं. पॉली हाउस कम जमीन और कम लागत में अधिक लाभ कमाने का एक अच्छा मध्यम भी बन गया है.
पॉली हाउस में खीरे की फसल का 1 साल में 50 से 60 टन उत्पादन होता है. जिसमे लगभग 10 से 12 लाख की आय होती है. यह खीरा अब राजधानी जयपुर व दिल्ली की मांग बन चुका है. किसानों में खेती किसानी में आधुनिक तकनीक का प्रयोग बढ़ रहा है. इसकी मदद से किसानों को कई गुना उत्पादन मिल रहा है. जिससे किसानों की समृद्धि भी बढ़ी है. किसान सीताराम ने बताया कि परंपरागत खेती में लागत बढ़ रही है, जिससे कई बार यह खेती किसानों के लिए नुकसान का सौदा बन जाती है.
भूजल स्तर में निरंतर गिरावट, महंगे होते उर्वरक व बीज के कारण परम्परागत खेती अब लाभ का सौदा नहीं रही. किसान सीताराम ने बताया कि खीरे की फसल फायदे की होने से उन्होंने कृषि विभाग के अधिकारियों से संपर्क किया तो कृषि विभाग के अधिकारियों ने उन्हें पॉलीहाउस के बारे में जानकारी दी. साथ ही सरकार की ओर से मिलने वाली सब्सिडी और अन्य सुविधाओं के बारे में अवगत करवाया. 2019 में उन्होंने पॉली हाउस बनाया, जिसमें उन्होंने खीरे की फसल उगाई. पहले ही साल में उन्हें करीबन 3 लाख रुपए का मुनाफा हुआ. उनके साथ इस काम मे 7 लोग लगे हुए है. जो कि दिनभर का खेती से जुड़ा हुआ काम करते है.
उद्यान विभाग के सहायक निदेशक लीलाराम जाट ने बताया कि अलवर जिले में कुछ सालों से हर सीजन में खीरे की खेती की जा रही है. इसका उत्पादन भी अच्छा हो रहा है व इसकी लोकल मार्केटिंग भी की जा रही है. यह अच्छे दामों में बिक जाता है. वहीं इसकी उत्पादन मात्रा भी अधिक होती है. ग्रीन हाउस में उच्च मूल्य वाली फसलों में 70% अनुदान दिया जाता है. इसमें खाद्य, बीज का मैनेजमेंट किसान का होता है. काश्तकार को एक बार ही अनुदान दिया जाता है. उसके बाद यदि वह फिर से यह खेती करना चाहता है, तो वह अपनी खुद के स्तर से इसे कर सकता है. इससे किसानों को पहली बार में सहायता मिल जाती है व उन्हें तकनीकी सहायता मिल जाती है.