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Business Idea: करौली क्षेत्र के अधिकतर किसान परंपरागत खेती से जुड़े हुए हैं. जिससे उन्हें मुनाफा सिर्फ घर चलाने को ही मिल पाता है. लेकिन इन दिनों टोडाभीम क्षेत्र के खेड़ी गांव के उपसरपंच नरहरी मीणा ने खेती में नवाचार करते हुए परंपरागत खेती को छोड़ थाई एप्पल की खेती शुरू की है.
करौली क्षेत्र के अधिकतर किसान परंपरागत खेती से जुड़े हुए हैं. जिससे उन्हें मुनाफा सिर्फ घर चलाने को ही मिल पाता है. लेकिन इन दिनों टोडाभीम क्षेत्र के खेड़ी गांव के उपसरपंच नरहरी मीणा ने खेती में नवाचार करते हुए परंपरागत खेती को छोड़ थाई एप्पल की खेती शुरू की है. थाई एप्पल थाईलैंड का प्रमुख फल है. भारत में थाई एप्पल की पैदावार खास तौर पर कोलकाता की तरफ होती है. वहीं से थाई एप्पल की खेती देख खेड़ी गांव के उपसरपंच ने भी इसकी शुरुआत कर दी है. और अब सालाना लाखों में इनकम हो रही है.
7 माह पहले कोलकाता से मंगाए थे 360 पौधे खेड़ी उपसरपंच किसान नरहरी मीना का कहना है कि हमारे माता-पिता और बुजुर्ग कई पीढ़ियों से परंपरागत खेती करते आ रहे हैं. परंपरागत खेती जैसे गेहूं, चना, और सरसों से हम केवल पेट भर सकते हैं. अच्छी आमदनी के लिए मैंने इस बार अपने खेत में 2 बीघा में जमीन में थाई एप्पल का बगीचा लगाया है. जिसके लिए मैंने पौधे 7 महीने पहले कोलकाता से मंगवाकर अपने खेत में लगाए थे. फिर इनको देशी और जैविक खाद के माध्यम से विकसित किया.
पौधे से पेड़ बनने के बाद करीब 6 महीनों बाद पेड़ों ने फल देना शुरू कर दिया. और अब लगभग एक बीघा में ही 2 लाख रुपए की आमदनी हो जाती है. वहीं परंपरागत खेती में 5 बीघा जमीन में गेहूं और सरसों की फसल से 1 लाख रुपए की भी आमदनी नहीं मिल पाती थी . इस फल का मंडी में थोक का भाव ₹25 किलो तक मिल जाता है. किसानों के लिए यह खेती आमदनी का एक अच्छा जरिया है.
50 साल होती है इसकी उम्र, साल में एक बार पड़ती है पानी की जरूरत- थाई एप्पल की खेती कर रहे उपसरपंच नरहरी मीणा ने बताया कि किसानों के लिए थाई एप्पल की खेती कम समय में अच्छी आमदनी का जरिया है.
थाई एप्पल की पेड़ की सबसे बड़ी खासियत है कि इसमें किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं लगती है. और 50 साल तक इसकी उम्र होती है. इसमें किसी भी प्रकार के रासायनिक खाद की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है. पानी की भी थाई एप्पल को बहुत कम आवश्यकता होती. साल में एक बार पानी मिलने पर भी यह पेड़ जीवित रह सकता है.