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सर्दियों के दौरान कच्छ के बन्नी इलाके को रणोत्सव के लिए दुल्हन की तरह सजाया जाता है, लेकिन एक बार रणोत्सव खत्म होने और गर्मी शुरू हो जाने के बाद इस इलाके पर किसी की नजर नहीं जाती.
सर्दियों के दौरान कच्छ के बन्नी इलाके को रणोत्सव के लिए दुल्हन की तरह सजाया जाता है, लेकिन एक बार रणोत्सव खत्म होने और गर्मी शुरू हो जाने के बाद इस इलाके पर किसी की नजर नहीं जाती. बन्नी क्षेत्र, जो रणोत्सव की मेजबानी करता है और लाखों पर्यटकों का स्वागत करता है, गर्मी शुरू होते ही हर साल की तरह पानी के लिए तरसता रहता है. इस वजह से हर साल की तरह इस साल भी लोगों ने अपने गांव से पलायन करना शुरू कर दिया है.
यहां के पशुपालकों को अपनी नहीं, बल्कि अपने मवेशियों की चिंता है. जैसे कोई परिवार अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए किसी बड़े शहर में पलायन कर जाता है, वैसे ही इन पशुपालक भी इन तीन महीनों के लिए अपने बच्चों यानी अपने मवेशियों के लिए दूसरी जगह पलायन कर जाते हैं.
"लड़े व्या छडे व्या, कहे धण धणार, तो भ मीठडो मुजो वतन बन्नीयनजो..." इस पंक्ति का अर्थ है, "पशुपालक कह रहे है की, हमने छोड दिया, मवेशियों के साथ मजबूरन निकल गए, फिर भी मेरा वतन बन्नी सबसे प्यारा है."
कच्छ के बन्नी क्षेत्र में इन पंक्तियों का उपयोग ग्रामीण पलायन के दौरान करते हैं। पलायन अब एक क्रिया नहीं है, बल्कि एक मौसम हो गया है, हर बारह महीनों में उनके जीवन का एक नियमित क्रम बन गया है. आपको बता दें कि, इंसानी आबादी से तीन से चार गुना ज्यादा जानवरों की आबादी वाले इन गांवों में दिन में सिर्फ एक घंटे पानी मिलता है.
कच्छ के नाना सराडो समूह ग्राम पंचायत के उप सरपंच गुलाम मीठा खान ने News18 को बताया कि "गाँव के बाहरी इलाके में घास में आग लगने के बाद अब घास की कमी हो गई है. पानी की अनियमितता के कारण कुए इतने खाली हो गए हैं कि, उनमें आग भी लगा सकते है."
पंचायत के पूर्व सरपंच फकीरमाद जाट ने कहा कि, गांव के तालाबों में पानी अब सबसे नीचे है और बहुत गंदा है. अवाड़ा में पर्याप्त पानी नहीं होने के कारण हमारे मवेशियों को झील का गंदा पानी पीना पड़ता है. इससे वे बीमार पड़ते हैं और उनका दूध उत्पादन भी कम हो जाता है. पानी की इस समस्या के कारण ही गांव की कई भैंसें पांच-छह महीने का गर्भ धारण के बाद गर्भपात जावप हो जाती हैं."
बन्नी क्षेत्र के नाना सारादो समूह ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले नाना सारादो, बड़ा सारादो, रभु वांढ, सांवलपुर वंध आदि गांवों में लोग इस समय पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहे हैं. इन गांवों की टंकियों में दिन में एक घंटे ही पानी आता है.
इस दौरान गांव की महिलाएं हेल, घडा और गागर से पानी भरने जाते है. इन्हीं महिलाओं में से एक हैं जीजाबाई, जो रोज पानी लाने के लिए एक हाथ में छोटा बच्चा और दूसरे हाथ में घडे को उठाके पानी भरने जाती हैं.
पूरे बन्नी क्षेत्र में पशुओं की सबसे बड़ी संख्या इस छोटे सारादो समूह ग्राम पंचायत में आती है. करीब 10 हजार इंसानी आबादी यहां 30 हजार से ज्यादा जानवरों की देखभाल करती है.
इन चरवाहों और उनके मवेशियों के लिए शेरवो गांव का खारा पानी (salty water) ही एकमात्र विकल्प है. छह किलोमीटर दूर से आने वाला खारा पानी आता है, तो यहां के जानवर उससे पीकर अपनी प्यास बुझाते हैं। इसके साथ ही गांव की महिलाएं भी उसी अवाडा से पानी भरकर लाती हैं, जिसे उनके परिवार पीने और घरेलू कामों में इस्तेमाल करते हैं.
गौरतलब है कि, पिछले साल कच्छ के एक अस्पताल के उद्घाटन के अवसर पर लाइव जुड़े प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बन्नी के इन मालधारियों के लिए अपनी चिंता व्यक्त की और उनसे आग्रह किया कि वे अपना गांव छोड़कर पलायन न करें, बल्कि जीवन की सबसे जरूरी चीज, पानी को लेकर ये मालधारी लाचार हो गए हैं. अपने लिए नहीं तो अपने पशुओं के लिए मालधारी हर साल यही त्याग करते रहे हैं.