सूत्रों का कहना है कि अधिकारियों ने दो वजहों से सख्त आपत्ति जताई है. पहला, वेदांता के हाल के बयान. जिसमें वेदांता ने कहा है कि सरकार आखिर बीस साल पहले जब हिंदुस्तान जिंक में सरकारी हिस्सेदारी बेचने की बात हुई थी तब से लेकर अब तक सरकार हिस्सेदारी क्यों नहीं बेच रही है. ससकारी सूत्रों के मुताबिक वेदांता का ये बयान को गैर जिम्मेदाराना है. साल 2014 में जो तय हुआ था उसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट और अलग अलग लीटीगेशन नें फंसा था ऐसे में सरकार हिस्सेदारी बेच नहीं सकती थी.
वेदांता का एक और बयान सरकार को नागवार गुजरा है. वेदांता के चेयरमैन ने कहा है कि एक तय फॉर्मूले के मुताबिक सरकारी हिस्सेदारी उन्हें सौंपी जानी है.
सरकार इस बयान को भी गलत बता रही है. सरकारी सूत्रों के मुताबिक जो फॉर्मूला तय हुआ है और जिस फॉर्मूले पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर भी लगाई है.
उसके हिसाब से सरकार सीधे तौर पर अपनी हिस्सेदारी वेदांता को नहीं दे सकती है. अभी भी सरकारी हिस्सेदारी सीधे वेदांता को बेचने का सवाल ही नहीं उठता.
सरकार ऑफर फॉर सेल के जरिये ही अपनी हिस्सेदारी बेचेगी. वेदांता चाहे तो OFS के जरिये शेयर खरीद ले. वो भी सेबी नियमों के मुताबिक OFS के एक तिहाई से ज्यादा शेयर वेदांता खरीद नहीं सकती है.
सरकार की नाराजगी की एक और वजह है. हिंदुस्तान जिंक को जिंक बिजनेस बेचने का समय. जब सरकार ने OFS लाने का ऐलान कर दिया था.
OFS की प्रक्रिया चल रही थी उस वक्त हिंदुस्तान जिंक को जिंक बिजनेस बेचने का फैसला सही नहीं था. सरकार को शिकायत ये भी है कि हिंदुस्तान जिंक को जिंक बिजनेस बेचने से पहले उनसे कोई संपर्क नहीं किया गया. माइनॉरिटी स्टेक होल्डर्स की राय नहीं ली गई. इसलिए सरकार ने इस प्रस्ताव को विरोध किया है.
ऐसे में अपेक्षा की जा रही है वेदांता इस प्रस्ताव पर आने वाले दिनों में सरकार से चर्चा कर सकती है. हालांकि इन सबका नतीजा ये निकला कि OFS में थोड़ी देर हो सकती है. क्योंकि सरकार शेयर की कीमतों और शेयर बाजार के स्थिर होने का इंतजार करेगी. औऱ सही समय पर OFS लाएगी. वो भी किस्तों में.