अमेरिकी सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व की बैठक 31 जनवरी से शुरू हो रही है. फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (एफओएमसी) की दो दिवसीय बैठक के बाद फेडरल रिजर्व चेयरमैन जेरोम पॉवेल एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे. इसमें वो ब्याज दरों की जानकारी देंगे. दुनियाभर के अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अमेरिका में ब्याज दरों में 0.25 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है. आपको बता दें कि बाजार यूरोपीय सेंट्रल बैंक के फैसले का भी इंतजार कर रहा है.
US फेड ब्याज दरें क्यों बढ़ा रहा?
बढ़ती महंगाई को काबू करने के लिए अमेरिकी केंद्रीय बैंक यानी फेडरल रिजर्व सख्त रुख के साथ ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर रहा है ताकि वहां की अर्थव्यवस्था में पैसों की सप्लाई कम हो सके.
जब किसी अर्थव्यवस्था में ब्याज दरें कम होती हैं तो लोग सस्ते में लोन लेते हैं. इससे वे गुड्स और सर्विसेज पर भरपूर खर्च कर पाते हैं. इस तरह अर्थव्यवस्था में पैसों की सप्लाई बढ़ जाती है.
इससे सप्लाई की तुलना में डिमांड में बढ़ोतरी देखने को मिलती है. डिमांड-सप्लाई में इसी असंतुलन से गुड्स और सर्विसेज की कीमतों में तेजी आती है, जिसे आमतौर पर महंगाई कहा जाता है.
इसी को कम करने के लिए केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ा देता है ताकि अर्थव्यवस्था में पैसों की सप्लाई कम हो जाए. इससे गुड्स और सर्विसेज की कीमतें कम करने में मदद मिलती है और महंगाई कम होती है.
भारत पर इसका क्या असर होगा?
जब फेड ब्याज दरों में बढ़ोतरी करता है तो अमेरिकी और भारतीय ब्याज दरों में अंतर कम होता है. इससे भारत समेत दूसरी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में करेंसी कैरी ट्रेड कम आकर्षक होती है.
इससे भारत की पूंजी देश से बाहर जाती है और डॉलर के मुकाबले रुपए में कमजोरी आती है. इस प्रकार अमेरिकी महंगाई का असर भारतीय अर्थव्यवस्था में भी देखने को मिलता है और यहां भी ब्याज दरों में बढ़ोतरी का फैसला लेना पड़ता है.
आमतौर पर फेड रिजर्व के ब्याज दरों में बढ़ोतरी के बाद माना जाता है कि भारत में भी ब्याज दरें बढ़ेंगी. ब्याज दरें बढ़ने से उन कंपनियों के शेयरों पर असर पड़ता है, जिनका कारोबार इससे जुड़ा है.
भारत का व्यापार घाटा रिकॉर्ड स्तर पर है. इसका मतलब है कि भारत निर्यात की तुलना में ज्यादा आयात कर रहा है. ऐसे में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ब्याज दरों में कुछ इस तरह बढ़ोतरी करेगा कि भारतीय और अमेरिकी ब्याज में अंतर से डॉलर का भाव प्रभावित हो.