सबसे पहले आपको ओपेक प्लस के बारे में बताते हैं. 23 तेल एक्सपोटर्स देशों के समूह को ओपेक प्लस कहा जाता है. हर महीने विएना में ओपेक प्लस देशों की बैठक होती है. इस बैठक में ये फैसला किया जाता है कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कितना कच्चा तेल देना है. इस समूह के मूल में ओपेक (ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ ऑयल एक्सपोर्टिंग कंट्रीज) के 13 सदस्य हैं, जिनमें मुख्य तौर पर मध्य पूर्वी और अफ्रीकी देश हैं. इसका गठन सन 1960 में उत्पादक संघ के तौर पर हुआ था. इसका मकसद दुनियाभर में तेल की आपूर्ति और उसकी कीमतें तय करना था.
इस बार की बैठक में क्या हुआ
बैठक में पुराने फैसले को बरकार रखा गया है. नवंबर में रोजाना 2 मिलियन बैरल की भारी कटौती करने का निर्णय लिया था. यह कटौती अब आगे भी बरकरार रहेगी. इस कटौती से भारत सहित ग्लोबल स्तर पर तेल की कीमतों में कितना उतार-चढ़ाव आएगा अभी यह स्पष्ट नहीं है.
आपको बता दें कि अक्टूबर महीने में ओपेक प्लस संगठन के 23 देशों ने उत्पादन में प्रतिदिन 20 लाख बैरल उत्पादन में कटौती करने का फैसला लिया था.
यह फैसला हाल ही में लागू हुआ है. इसके बाद कच्चे तेल के दाम में उठापटक देखने को मिली. 28 नवंबर को कच्चा तेल सितंबर के बाद सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया था. वहीं, नवंबर महीने में ब्रेंट क्रूड के भाव सबसे बड़ा सप्ताहिक क्लोजिंग देखने को मिली थी.
क्यों हुई थी ओपेक की बैठक
दुनियाभर में तेल के दामों को कम करने की मांग के बीच दुनिया के सबसे बड़े एक्सपोटर्स देशों की 4 दिसंबर को बैठक हुई थी. लेकिन तेल उत्पादक देशों के समूह ओपेक प्लस ने क्रूड उत्पादन में कटौती से इनकार कर दिया है. ओपेक प्लस देशों में रूस भी शामिल है.