मार्च के बाद से ही यूनिवर्सिटीज और कॉलेज कैंपस गुलजार होने लगते हैं, लेकिन एडमिशन कोई आसान काम नहीं है. बेहतर कॉलेज और यूनिवर्सिटी की सीटें 98 फीसदी मार्क्स वाले लूट ले जाते हैं. ऐसे में बाकी स्टूडेंट्स के लिए दुविधा की स्थिति बन जाती है कि वे आखिर जाएं तो जाएं कहां! ऐसे में मजबूरी में कई बच्चे घटिया या जाली इंस्टीट्यूट के जाल में भी फंस जाते हैं. तो एडमिशन से पहले आखिर क्या देखें? देश में बेहतर सरकारी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की संख्या सीमित है. ऐसे में भारी संख्या में ग्रेजुएट और अंडरग्रेजुएट छात्रों को खपाने के लिए निजी संस्थानों और कॉलेजों की जरूरत लगातार बढ़ रही है. इसी वजह से देश में प्राइवेट और फर्जी संस्थानों की बाढ़-सी आ गई है. यहां एक बात यह भी बताना जरूरी है कि न तो सभी प्राइवेट संस्थान बेकार हैं और न ही सभी प्राइवेट यूनिवर्सिटी में खोट है. दिक्कत यह है कि क्वॉलिटी एजुकेशन के मामले में इनमें से ज्यादातर की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. ये संस्थान छात्रों के करियर की समस्या को सुलझाने के बजाय उलझा देते हैं. मोटी फीस वसूलने और टॉप क्लास की सुविधा देने का वादा करने वाले इन संस्थानों की क्वॉलिटी पर सवाल उठते रहते हैं, बावजूद इसके बच्चे इनके जाल में फंस जाते हैं.