टीडीएस अलग-अलग तरह के आय स्रोतों पर काटा जाता है जैसे- सैलरी, किसी निवेश पर मिले ब्याज या कमीशन आदि. सरकार टीडीएस के जरिए टैक्स जुटाती है. हालांकि ये हर आय और लेनदेन पर लागू नहीं होता है. टीडीएस काटने के लिए आयकर विभाग की तरफ से कुछ नियम तय किए गए हैं. आपको बता दें कि सरकार सीधे तौर पर टीडीएस नहीं काटती है. टीडीएस सरकार के खाते में जमा करने की जिम्मेदारी पेमेंट करने वाले व्यक्ति या फिर उस संस्था की होती है जो भुगतान कर रहा है. टीडीएस काटने वालों को डिडक्टर कहा जाता है. वहीं जिसे टैक्स काट के पेमेंट मिलती है उसे डिडक्टी कहते हैं.
सैलरी पर टीडीएस-
मौजूदा टैक्स नियमों के मुताबिक, सैलरी इनकम से TDS काटने की कोई अलग दर नहीं है. यह दर इनकम टैक्स स्लैब पर निर्भर करती है जिसमें कोई कर्मचारी आता है. संस्थान 'इनकम टैक्स की औसत दर' पर टैक्स देनदारी को कैलकुलेट करते हैं.
कुल टैक्स देनदारी को कर्मचारी की कुल इनकम से भाग देकर औसत दर को निकाला जाता है. सैलरी से टैक्स काटने के लिए कुल टैक्स देनदारी कैलकुलेट करने की खातिर उन तमाम टैक्स सेविंग निवेश को ध्यान रखा जाता है जिसमें कर्मचारी पैसा लगाता है.
नौकरी बदलने पर- किसी वित्त वर्ष के दौरान कर्मचारी नौकरी बदल सकता है. उस स्थिति में उसे दो संस्थानों से सैलरी मिलेगी. चूंकि टीडीएस काटने के लिए नए संस्थान पर इनकम टैक्स की औसत दर को कैलकुलेट करने की जिम्मेदारी होगी. लिहाजा, कर्मचारी को नए कर्मचारी को फॉर्म 12बी जमा करना होगा.
इस फॉर्म में उस सैलरी का ब्योरा होगा जो उसे पिछले संस्थान से मिली है. इससे यह भी पता चल जाएगा कि पिछले संस्थान ने कितना टीडीएस काटा है. इस तरह नया संस्थान फॉर्म 12बी के ब्योरे के आधार पर कर्मचारी की नई टैक्स देनदारी को कैलकुलेट करेगा.
अलग-अलग तरह की सर्विसेज पर अलग-अलग टीडीएस की दरें तय होती हैं जैसे- सैलरी पर टैक्स स्लैब के हिसाब से टीडीएस काटा जाता है वहीं बिल्डिंग पर या अन्य ऐसे ही किसी किराया वसूलने पर इसके अलग नियम हैं.
इसके अलावा बेसिक जरूरतों के अलावा खरीदे जाने वाले सामान जिन पर तय सीमा से ज्यादा पेमेंट किया जाता हो उस पर भी टीडीएस कटता है.