फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने बुधवार को साफ किया कि दिसंबर में ब्याज दरों में बड़ी बढ़ोतरी की संभावना कम है. महंगाई को कम करने के लिए उठाए गए कदमों के खिलाफ जारी लड़ाई के बावजूद ब्याज दरों में बढ़ोतरी की संभावना कम है. पॉवेल ने कहा कि सेंट्रल बैंक दिसंबर महीने में ब्याज दरों में बड़ी बढ़ोतरी नहीं देख रहे है.दुनियाभर में महंगाई देखने को मिल रही है. इसके साथ ही अब मंदी की भी आशंका है. बढ़ती महंगाई को काबू करने के लिए अमेरिकी केंद्रीय बैंक यानि फेडरल रिजर्व सख्त रुख के साथ ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर रहा है ताकि वहां की अर्थव्यवस्था में पैसों की सप्लाई कम हो सके.
शेयर बाजार पर इसका क्या असर होगा?
अगर ब्याज दरों में कम बढ़ोतरी होती है तो घरेलू बाजार में जोरदार तेजी आ सकती है. बढ़ती महंगाई और जियो-पॉलिटिकल तनाव का असर घरेलू बाजार पर पहले ही देखने को मिल चुका है.
जब किसी अर्थव्यवस्था में ब्याज दरें कम होती हैं तो लोग सस्ते में लोन लेते हैं. इससे वे गुड्स और सर्विसेज पर भरपूर खर्च कर पाते हैं. इस तरह अर्थव्यवस्था में पैसों की सप्लाई बढ़ जाती है. इससे सप्लाई की तुलना में डिमांड में बढ़ोतरी देखने को मिलती है.
डिमांड-सप्लाई में इसी असंतुलन से गुड्स और सर्विसेज की कीमतों में तेजी आती है, जिसे आमतौर पर महंगाई कहा जाता है.
इसी को कम करने के लिए केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ा देता है ताकि अर्थव्यवस्था में पैसों की सप्लाई कम हो जाए. इससे गुड्स और सर्विसेज की कीमतें कम करने में मदद मिलती है और महंगाई कम होती है.
आमतौर पर फेड रिजर्व के ब्याज दरों में बढ़ोतरी के बाद माना जाता है कि भारत में भी ब्याज दरें बढ़ेंगी. ब्याज दरें बढ़ने से उन कंपनियों के शेयरों पर असर पड़ता है, जिनका कारोबार इससे जुड़ा है.
भारत का व्यापार घाटा रिकॉर्ड स्तर पर है. इसका मतलब है कि भारत निर्यात की तुलना में ज्यादा आयात कर रहा है. ऐसे में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ब्याज दरों में कुछ इस तरह बढ़ोतरी करेगा कि भारतीय और अमेरिकी ब्याज में अंतर से डॉलर का भाव प्रभावित हो.